द गर्ल इन रूम 105–६७
श्री नमन राजपुरोहित, एडवोकेट
महानगर कार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
"तुमने अपने पैरेंट्स को बताया था ना कि मैं आ रही हूँ?" जारा ने थोड़ा नर्वस होते हुए कहा । 'बिलकुल, ' मैंने कहा, हालांकि यह बात पूरी तरह सच नहीं थी। मैंने दरवाज़े की घंटी बजाई। मैंने अपने पैरंट्स को इतना ही बताया था कि वीकेंड के लिए मैं अपने एक दोस्त को साथ लेकर आ रहा हूं।
वो दोस्त एक लड़की है, यह केवल मां को मालूम था। और उसका नाम जारा है, यह तो मैंने मां को भी नहीं बताया था। मैं नहीं चाहता था कि उससे मिलने से पहले ही उसके बारे में कोई राय बना ली जाए। मैंने यह भी नहीं बताया था कि हम दोनों रिलेशनशिप में हैं। एक दोस्त है, जिसे अलवर घूमना है, मैंने बस इतना ही बताया था। मेरी मां को यह सुनकर आश्चर्य हुआ था कि यह दोस्त एक लड़की है। हां, और वो आईआईटी में अपनी पीएचडी कर रही है, मैंने कैजुअल लहजे में बोलने की कोशिश करते हुए कहा था। भारतीय पेरेंट्स लड़का-लड़की के बीच की दोस्ती को लेकर तब थोडे ज्यादा सहज होते हैं, जब उसके पीछे पढ़ाई-लिखाई वाली कोई वजह हो। मैं जानता था कि मेरे पैरेंट्स जारा से मिलते ही उसे पसंद कर लेंगे। मैं उन्हें यह बाद में बताने वाला था कि हमने पूरी जिंदगी एक-दूसरे के साथ बिताने का फैसला किया है।
"सॉरी, मैं किचन में थी, मां ने दरवाजा खोलते हुए कहा। "नमस्ते, आंटी' जारा ने बहुत नज़ाकत से हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए कहा। उसके हाथों की चूड़िया
खनक उठीं।
"कितनी सुंदर हो, मां ने कहा। ज़ारा मुस्करा दी।
'मां, ये जारा है, ' मैंने कहा, लेकिन मेरे ख्याल से मां ने मुझे ठीक से सुना नहीं। "अंदर आ जाओ। बाहर बहुत गर्मी है.' उन्होंने जारा से कहा।
'लंच जल्द ही तैयार हो जाएगा, मां ने किचन में जाते हुए कहा। अब मैं और जारा बैठक में अकेले रह गए थे। ज़ारा सोफ़े पर बैठी थी और दीवारों का मुआयना कर रही थी, जिन पर राजस्थानी पेंटिंग्स और फ्रेम की गई तस्वीरे टंगी थीं। उसने राजनीतिक रसूख रखने वाले कुछ लोगों के साथ मेरे पिता के फोटो देखे ।
"ये तो पीएम है?" उसने कहा।
"हां, तस्वीर खिंचवाते समय वे सीएम हुआ करते थे। ' 'बाऊ, तुम्हारे पिता तो उन्हें क़रीब से जानते हैं।'
"थे आरएसएस के सीनियर मेंबर जो हैं। यानी एक शादीशुदा आदमी जितना सीनियर हो सकता है, उतने।'
'मतलब?'
'आरएसएस में बड़े पद आमतौर पर उन लोगों को दिए जाते हैं, जो शादीशुदा नहीं हैं।' "ऐसा क्यों? शायद समझदार लोगों को चुनने का यह तरीका हो। अगर कोई इंसान समझदार होगा तो शादी क्यों करेगा?' जारा ने खिलखिलाते हुए कहा। फिर वह दीवार तक चलकर गई और तस्वीरों को और करीब से देखने लगी। मैं कल्पना करने लगा कि
शादी के बाद वह इस घर में कैसी लगेगी। हम लॉन में बैठेंगे। वह मेरे माता-पिता से बातें करेगी। शायद हमारे
एक या दो बच्चे भी हो चुके होंगे। मैं सोचने लगा कि उनके नाम क्या रखे जाने चाहिए। क्यों ना ऐसा कोई नाम रखा जाए तो हिंदू और मुसलमान दोनों में चलता है, जैसे कबीर?
मैंने जारा को देखा। वो इस बड़े-से घर में बहुत ही नाजुक सी लग रही थी। वह छोटी लड़कियों की तरह
अपने हाथ बांधे बड़ी थी। मैं बहुत खुश था कि आखिरकार वो मेरे घर पर आई थी।
"तुम बचपन में बहुत क्यूट थे, उसने मेरे एक ब्लैक एंड व्हाइट फोटो को देखकर कहा ।